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भूमिका

गुरु महाराज ने दृढ़ता के साथ यह ज्ञान बतलाया कि सब संतों का एक ही मत है। मैंने सोचा कि यदि बहुत-से संतों की वाणियों का संग्रह किया जाए, तो उस संग्रह के पाठ से गुरु महाराज की उपर्युक्त बात की यथार्थता लोगों को उत्तमता से विदित हो जाएगी। इसी हेतु मैंने यत्र-तत्र से उनका संग्रह किया। पहला संग्रह ‘सत्संग-योग’ के दूसरे भाग में छपवा दिया। उस संग्रह के बाद और भी संग्रह होता गया। ‘सत्संग-योग’ के छपवाने के बाद कुछ प्रेमी सत्संगीगण कहने लगे-‘संतवाणी का संग्रह हुआ, बड़ा अच्छा हुआ; परन्तु इन वाणियों का अर्थ भी आप कर दें, तो और भी अच्छा हो।’
मुझको भी यह बात अच्छी लगी; परन्तु मैं उस काम को उस समय कर नहीं सका। सत्संग की ओर से ‘शांति-संदेश’ मासिक पत्र निकाला गया, जो अभी तक निकल रहा है। उस पत्र के प्रत्येक अंक में संगृहीत संतवाणी का अर्थ-सहित एक-एक भजन निकलना शुरू हुआ। यह काम सन् 1950 ई0 से अनवरत रूप से अबतक होता आ रहा है। सम्भवतः 1966 ई0 में मेरे अति प्यारे और विश्वासी सत्संगी श्रीबाबू विश्वानन्दजी, एम0 ए0, उपप्राचार्य, कोशी महाविद्यालय (जिला-मुंगेर, स्थान-खगड़िया) ने यह सुझाव दिया कि अबतक जितनी अर्थ-सहित संत-वाणियाँ ‘शांति-संदेश’ में निकल चुकी हैं, सबका संग्रह कर एक पुस्तकाकार में छपवा दिया जाए कि लोग उस पुस्तक से विशेष लाभ उठावें। ‘शांति-संदेश’ में वे अर्थ भिन्न-भिन्न अंकों में होने के कारण बिखरे पड़े हैं, जो लोगों के लिए अल्प लाभकारी हैं। इस हेतु से ही ‘संतवाणी सटीक’ नाम्नी पुस्तक छपवाई गई है।
संतों की वाणी संतों की अनुभूतियों और अनुभवों का अगम और अपार सिन्धु है। संतों का अनुभव योग-समाधि का अनुभव है, जो योग-अभ्यास की अन्तिम प्रत्यक्षता है, न कि केवल सोच-विचार का साहित्यिक अनुभव। ऐसे समुद्र में उसके ऊपरी तल में भी गोता लगाना अति दुर्लभ है, फिर उसके अन्तर की तह के अंत तक पहुँचकर उसका पूर्ण ज्ञाता बनना विकट से भी विकट, दुर्लभ से भी दुर्लभ और अद्वितीय महान कार्य है। मैं तो अपने को उसके ऊपरी तल में भी गोता लगाने के योग्य नहीं बना सकता हूँ, केवल उस तल को शायद कभी-कभी छू भर पाता हूँ। तब संतवाणी का अर्थ कैसे कर सकूँगा, सो पाठक स्वयं समझकर जान लें। केवल प्रेमी सत्संगियों के आग्रह को मानने के लिए मुझसे संतवाणी का जो अर्थ हो सका है, सो लिख दिया। विज्ञजन कृपया मेरी ढिठाई और भूलों के हेतु मुझे क्षमा करें और सुधारकर पढ़ें। यदि विज्ञजनों में से दूसरे प्रकार का अर्थ कार्यापेक्षित विज्ञ पुरुष प्रकाशित करने का कष्ट करेंगे, तो मैं उनका आभारी अपने को मानूँगा और यह जानकर अति हर्षित होऊँगा कि उन्होंने जन-समूह पर विशेष कृपा करने का कष्ट उठाया है।
संतों ने ज्ञान और योग-युक्त ईश्वर-भक्ति को अपनाया। ईश्वर के प्रति अपना प्रगाढ़ प्रेम अपनी वाणियों में दर्शाया है। उनकी यह प्रेमधारा ज्ञान से सुसंस्कृत तथा सुरत-शब्द के सरलतम योग-अभ्यास से बलवती होकर, प्रखर और प्रबल रूप से बढ़ती हुई अनुभूतियों और अनुभव से एकीभूत हो गई थी, जहाँ उन्हें ईश्वर का साक्षात्कार हुआ और परम मोक्ष प्राप्त हुआ था। उनकी वाणी उन्हीं गम्भीरतम अनुभूतियों और सर्वोच्च अनुभव को अभिव्यक्त करने की क्षमता से सम्पन्न और अधिकाधिक समर्थ है। ‘संतवाणी सटीक’ में पाठकगण उसी विषय को पाठ कर जानेंगे।
संतवाणी को संग्रह कर लिखने में सत्संग-प्रेमी श्रीआनन्दजी ‘विशारद’ ने और इसके छपवाने में श्रीशिवकुमार तुलसी ने अथक परिश्रम किया है। मैं इनको धन्यवाद देता हूँ।
मकर पूर्णिमा
2024 विक्रम संवत्
सत्संग-सेवक
मेँहीँ

विषय-सूची

क्रम
पद्य संख्या
पद्यसंत क्रम
संत
11थोड़ो खाइ तो कलपै-झलपै, घणो खाइलै रोगी ।1योगी जालन्धर नाथजी की वाणी
21अवधू रहिबा हाटे बाटे, रूख-बिरख की छाया ।2योगी मत्स्येन्द्र नाथजी महाराज की वाणी
31बस्ती न शुन्यं शुन्यं न बस्ती, अगम अगोचर ऐसा ।3महायोगी गोरखनाथजी महाराज की वाणी
42हँसिबा खेलिबा धरिबा ध्यान, अहनिसि कथिबा ब्रह्मज्ञान । 3महायोगी गोरखनाथजी महाराज की वाणी
51लम्बा मारग दूरि घर, विकट पंथ बहु मार ।4संत कबीर साहब की वाणी
62अनहद बाजै नीझर झरै, उपजै ब्रह्म गियान ।4संत कबीर साहब की वाणी
73संपटि माँहिं समाइया, सो साहिब नहिं होइ ।4संत कबीर साहब की वाणी
84नैना बैन अगोचरी, श्रवनां करनी सार ।4संत कबीर साहब की वाणी
95बाबा जोगी एक अकेला, जाकै तीर्थ व्रत न मेला ।।4संत कबीर साहब की वाणी
106राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे ।।4संत कबीर साहब की वाणी
117अंजन अलप निरंजन सार, यहै चीन्हि नर करहु विचार ।।4संत कबीर साहब की वाणी
128अलख निरंजन लखै न कोई । निरभै निराकार है सोई ।।4संत कबीर साहब की वाणी
139भगति हेत गावै लै लीनां । ज्यूँ वन नाद कोकिला कीन्हां ।।4संत कबीर साहब की वाणी
1410साँच सील का चौका दीजै। भाव भगति की सेवा कीजै ।।4संत कबीर साहब की वाणी
1511कबीर मेरी सिमरनी, रसना ऊपरि राम ।4संत कबीर साहब की वाणी
1612सेख सबूरी बाहरा, क्या हज काबै जाइ ।4संत कबीर साहब की वाणी
1713हरि महि तनु है तनु महि हरि है, सर्व निरंतर सोई रे ।।4संत कबीर साहब की वाणी
1814कहत कबीर अवर नहिं कामा। 4संत कबीर साहब की वाणी
1915गुरु मिलि ताके खुले कपाट । बहुरि न आवै योनी बाट ।।4संत कबीर साहब की वाणी
2016सुन्न संध्या तेरी देव देवा, करि अधिपति आदि समाई ।4संत कबीर साहब की वाणी
2117मैं तो आन पड़ी चोरन के नगर, सतसंग बिना जिय तरसे ।4संत कबीर साहब की वाणी
2218साधो सब्द साधना कीजै ।4संत कबीर साहब की वाणी
2319जिनकी लगन गुरू सों नाहीं ।।4संत कबीर साहब की वाणी
2420गगन की ओट निसाना है ।।4संत कबीर साहब की वाणी
2521भक्ती का मारग झीना रे ।।4संत कबीर साहब की वाणी
2622बिन सतगुरु नर रहत भुलाना4संत कबीर साहब की वाणी
2723अपने घट दियना बारु रे ।।4संत कबीर साहब की वाणी
2824साधो भाई जीवत ही करो आसा ।।4संत कबीर साहब की वाणी
2925मोरे जियरा बड़ा अन्देसवा, मुसाफिर जैहो कौनी ओर ।।4संत कबीर साहब की वाणी
3026अवधू भूले को घर लावै, सो जन हमको भावै ।।4संत कबीर साहब की वाणी
3127ससी परकास तें सूर ऊगा सही, तूर बाजै तहाँ सन्त भूलै ।4संत कबीर साहब की वाणी
3228मन तू मानत क्यों न मना रे ।4संत कबीर साहब की वाणी
3329जाके नाम न आवत हिये ।।4संत कबीर साहब की वाणी
3430पाँच पचीस करे बस अपने, करि गुरु ज्ञान छड़ी ।4संत कबीर साहब की वाणी
3531अपनपौ आपुहि तें बिसरो ।।4संत कबीर साहब की वाणी
3632अस सतगुरु बोले सतबानी । 4संत कबीर साहब की वाणी
3733कबीर महिमा नाम की, कहना कही न जाय ।4संत कबीर साहब की वाणी
3834प्रथम एक सो आपै आप । निराकार निर्गुन निर्जाप ।।4संत कबीर साहब की वाणी
3935कहै कबीर विचारि के, तब कछु किरतम नाहिं ।4संत कबीर साहब की वाणी
4036सखिया वा घर सबसे न्यारा, जहँ पूरन पुरुष हमारा ।।4संत कबीर साहब की वाणी
4137जो कोइ निरगुन दरसन पावै ।।4संत कबीर साहब की वाणी
4238बिनु गुरु ज्ञान नाम नहिं पैहो, मिरथा जनम गँवाई हो ।।4संत कबीर साहब की वाणी
4339छैल चिकनियाँ अभै घनेरे, छका फिरै दीवाना ।4संत कबीर साहब की वाणी
4440कोई चतुर न पावे पार, नगरिया बावरी ।।4संत कबीर साहब की वाणी
4541विमल विमल अनहद धुनि बाजै4संत कबीर साहब की वाणी
4642जानता कोइ ख्याल ऐसा, जानता कोइ ख्याल ।।4संत कबीर साहब की वाणी
4743गुरुदेव बिन जीव की कल्पना ना मिटै, 4संत कबीर साहब की वाणी
4844गुरुदेव के भेद को जीव जानै नहीं, 4संत कबीर साहब की वाणी
4945रैन दिन संत यों सोवता देखता, 4संत कबीर साहब की वाणी
5046लोका मति का भोरा रे ।4संत कबीर साहब की वाणी
5147श्रूप अखण्डित व्यापी चैतन्यश्चैतन्य ।4संत कबीर साहब की वाणी
5248बाबा अगम अगोचर कैसा, तातें कहि समझाओ ऐसा ।।4संत कबीर साहब की वाणी
5349गुरु साहब करि जानिये, रहिये सब्द समाय ।4संत कबीर साहब की वाणी
5450गुरु सीढ़ी तें ऊतरै, सब्द बिहूना होय ।4संत कबीर साहब की वाणी
5551घर में घर दिखलाय दे, सो सतगुरु संत सुजान ।4संत कबीर साहब की वाणी
5652नाद विन्दु तें अगम अगोचर, पाँच तत्त्व तें न्यार ।4संत कबीर साहब की वाणी
5753सर्गुन की सेवा करौ, निर्गुन का करु ज्ञान ।  4संत कबीर साहब की वाणी
5854आदि नाम पारस अहै, मन है मैला लोह ।4संत कबीर साहब की वाणी
5955कबीर सब्द सरीर में, बिन गुन बाजै ताँत ।4संत कबीर साहब की वाणी
6056सब्द सब्द बहु अंतरा, सब्द सार का सीर ।4संत कबीर साहब की वाणी
6157सब्द सब्द बहु अन्तरा, सार सब्द चित देय ।4संत कबीर साहब की वाणी
6258नाम जपत इस्थिर भया, ज्ञान कथत भया लीन ।4संत कबीर साहब की वाणी
6359गागर ऊपर गागरी, चोले ऊपर द्वार ।4संत कबीर साहब की वाणी
6460पाँचो नौबत बाजती, होत छतीसो राग ।4संत कबीर साहब की वाणी
6561भाई कोई सतगुरु संत कहावै ।4संत कबीर साहब की वाणी
6662उठि पछिलहरा पिसना पीस ।।4संत कबीर साहब की वाणी
6763जियत न मार मुआ मत लैयो, मास बिना मत ऐयो रे ।।4संत कबीर साहब की वाणी
6864फल मीठा पै ऊँचा तरवर, कौनि जतन करि लीजै ।4संत कबीर साहब की वाणी
6965रस गगन गुफा में अजर झरै ।।4संत कबीर साहब की वाणी
7066झीनी-झीनी बीनी चदरिया।।4संत कबीर साहब की वाणी
7167है कोई गुरु ज्ञान पंडित, उलटि वेद बूझे ।4संत कबीर साहब की वाणी
7268कोई देखो लोगो नैया बीच, नदिया डूबी जाय ।।4संत कबीर साहब की वाणी
7369गगन गरजि बरसे अमी, बादल गहिर गम्भीर ।4संत कबीर साहब की वाणी
7470ठगिनी क्या नैना चमकावे, कबिरा तेरे हाथ न आवे ।।4संत कबीर साहब की वाणी
7571अवधू सो जोगी गुरु मेरा, या पद का जो करै निबेरा ।।4संत कबीर साहब की वाणी
7672कोई सुनता है गुरु ज्ञानी, गगन में आवाज होती झीनी ।।4संत कबीर साहब की वाणी
7773साईं ने पठाया, न्यामत हू मत लाना ।।4संत कबीर साहब की वाणी
7874संतो भक्ति सतोगुर आनी ।4संत कबीर साहब की वाणी
7975साधो यह तन ठाठ तँबूरे का ।।4संत कबीर साहब की वाणी
8076अँखियाँ लागि रहन दो साधो, हिरदे नाम सम्हारा ।4संत कबीर साहब की वाणी
8177बागों ना जा रे ना जा, तेरे काया में गुलजार ।।4संत कबीर साहब की वाणी
8278सन्त जन करत साहिबी तन में ।।4संत कबीर साहब की वाणी
8379वारी जाऊँ मैं सद्गुरु के, मेरा किया भरम सब दूर ।।4संत कबीर साहब की वाणी
8480सन्तौ अचरज भौ इक भारी, पुत्र धइल महतारी ।।4संत कबीर साहब की वाणी
8581कबीर गुरु की भक्ति कर, तजि विषया रस चौज ।4संत कबीर साहब की वाणी
8682मुरशिद नैनों बीच नबी है ।4संत कबीर साहब की वाणी
8783उठा बगूला प्रेम का, तिनका उड़ा अकास ।4संत कबीर साहब की वाणी
8884लव लागी तब जानिये, छूटि कभूँ नहिं जाय ।4संत कबीर साहब की वाणी
8985उनमुनि चढ़ी अकास को, गई धरनि से छूटि ।4संत कबीर साहब की वाणी
9086भाइ रे नयन रसिक जो जागे ।4संत कबीर साहब की वाणी
9187संतो जागत नींद न कीजै ।4संत कबीर साहब की वाणी
9288ये ततु राम जपहु रे प्रानी, तुम बूझहु अकथ कहानी ।4संत कबीर साहब की वाणी
9389संतो कहौं तो को पतिआई ।4संत कबीर साहब की वाणी
9490संतो आवै जाय सो माया ।4संत कबीर साहब की वाणी
9591संतो मते मातु जन रंगी ।4संत कबीर साहब की वाणी
9692अबधू छाड़हु मन विस्तारा।4संत कबीर साहब की वाणी
9793चुअत अमीरस भरत ताल, जहाँ शब्द उठे असमानी हो।4संत कबीर साहब की वाणी
9894अरे दिल गाफिल गफलत मत कर,4संत कबीर साहब की वाणी
9995मन तू थकत थकत थकि जाई।4संत कबीर साहब की वाणी
10096ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय।4संत कबीर साहब की वाणी
10197. सतगुरु सोई दया करि दीन्हा, तातें अनचिन्हार मैं चीन्हा4संत कबीर साहब की वाणी
10298. गगन घटा घहरानी साधो, गगन घटा घहरानी4संत कबीर साहब की वाणी
1031काइआ नगरु नगर गड़ अंदरि। 5गुरु नानक साहब की वाणी
1042तारा चड़िया लंमा किउ नदरि निहालिआ राम।।5गुरु नानक साहब की वाणी
1053जोगु न खिंथा जोग न डंडै जोगु न भसम चड़ाईअै ।5गुरु नानक साहब की वाणी
1064सुनि मन भूले बावरे, गुरु की चरणी लागु।5गुरु नानक साहब की वाणी
1075मोहु कुटंबु मोहु सभकार। 5गुरु नानक साहब की वाणी
1086अनहदो अनहदु बाजै, रुण झुणकारे राम।5गुरु नानक साहब की वाणी
1097अलख अपार अगम अगोचरि, ना तिसु काल न करमा।5गुरु नानक साहब की वाणी
1108जतु सतु संजमु साचु द्रिड़ाइआ, साच सबदि रसि लीणा।5गुरु नानक साहब की वाणी
1119अउहठि हसत मड़ी घरु छाइआ धरणि गगन कल धारि।।5गुरु नानक साहब की वाणी
11210काम क्रोध परहरु पर निन्दा, 5गुरु नानक साहब की वाणी
11311दुविधा बउरी मनु बउराइआ। 5गुरु नानक साहब की वाणी
11412सागर महि बूंद बूंद महि सागरु, कबणु बुझै विधि जाणै।5गुरु नानक साहब की वाणी
11513नदरि करे ता सिमरिआ जाई। आत्मा द्रवै रहै लिवलाई।।5गुरु नानक साहब की वाणी
11614घर महि घरु देखाइ देइ, सो सतगुरु परखु सुजाणु।5गुरु नानक साहब की वाणी
11715हम घरि साजन आए। साचै मेलि मिलाए।।5गुरु नानक साहब की वाणी
11816जैसे जल महि कमलु निरालमु, मुरगाई नैसाणै।5गुरु नानक साहब की वाणी
11917बिनु सतिगुर सेवे जोगु न होई ।5गुरु नानक साहब की वाणी
12018ज्ञान बोलै आपै बूझै, आपै समझै आपै सूझै।  5गुरु नानक साहब की वाणी
1211निराधार निज देखिये, नैनहु लागा बन्द।6संत दादू दयालजी की वाणी
1222नैनहुँ आगें देखिये, आतम अन्तर सोइ।6संत दादू दयालजी की वाणी
1233अनहद बाजे बाजिये, अमरापुरी निवास।6संत दादू दयालजी की वाणी
1244सबद अनाहद हम सुन्या, नख सिख सकल सरीर।6संत दादू दयालजी की वाणी
1255सबदैं सबद समाइले, पर आतम सों प्राण।6संत दादू दयालजी की वाणी
1266दृष्टै दृष्टि समाइले, सुरतैं सुरत समाइ।6संत दादू दयालजी की वाणी
1277जोग समाधि सुख सुरति सौं, सहजै सहजै आव।6संत दादू दयालजी की वाणी
1288सहज सुन्नि मन राखिये, इन दुन्यूँ के माहिं।6संत दादू दयालजी की वाणी
1299सुन्नहिं मारग आइया, सुन्नहिं मारग जाइ।6संत दादू दयालजी की वाणी
13010सुरत समाइ सनमुख रहै, जुगि जुगि जन पूरा।6संत दादू दयालजी की वाणी
13111दादू उलटि अपूठा आप में, अंतरि सोधि सुजाण।6संत दादू दयालजी की वाणी
13212सुरति अपूठी फेरि कर, आतम माहैं आण।6संत दादू दयालजी की वाणी
13313सुरति सदा सनमुख रहै, जहाँ तहाँ लैलीन।6संत दादू दयालजी की वाणी
13414सुरति सदा स्यावित रहै, तिनके मोटे भाग।6संत दादू दयालजी की वाणी
13515सब काहू को होत है, तन मन पसरै जाइ ।6संत दादू दयालजी की वाणी
13616नीके राम कहतु है बपुरा।।6संत दादू दयालजी की वाणी
13717जोगिया बैरागी बाबा। रहै अकेला उनमनि लागा ।।6संत दादू दयालजी की वाणी
13818मेरा मन के मन सौं मन लागा।6संत दादू दयालजी की वाणी
13919आरती जग जीवन तेरी। तेरे चरन कँवल पर वारी फेरी ।।6संत दादू दयालजी की वाणी
14020दादू जानै न कोई, सन्तन की गति गोई ।।6संत दादू दयालजी की वाणी
14121सतसंगति मगन पाइये। गुर परसादैं राम गाइये।।6संत दादू दयालजी की वाणी
14222आप आपण में खोजौ रे भाई। वस्तु अगोचर गुरू लखाई।।6संत दादू दयालजी की वाणी
1431ऐसा देश दिवाना रे लोगो, जाय सो माता होय।7सन्त चरणदासजी की वाणी
1442मनुवाँ राम के व्यापारी7सन्त चरणदासजी की वाणी
1453जीवित मर जाय, उलट आप में समाय, 7सन्त चरणदासजी की वाणी
1461चल सूआ तेरे आद राज। 8संत दरिया साहब (मारवाड़ी) की वाणी
1471झकझक्क लगा झकझक्क लगा रिमिझिमि का नुर 9सन्त दरिया साहब (बिहारी) की वाणी
1482जाके अनभो आगि लगी।9सन्त दरिया साहब (बिहारी) की वाणी
1493काया गढ़ कनक मन रावना मद है, 9सन्त दरिया साहब (बिहारी) की वाणी
1504सन्तो साधु लच्छन निज बरना। 9सन्त दरिया साहब (बिहारी) की वाणी
1515याफ्रत तदबीर है दिल के बीच में, 9सन्त दरिया साहब (बिहारी) की वाणी
1526सन्तो सुमिरहु निर्गुन अजर नाम। 9सन्त दरिया साहब (बिहारी) की वाणी
1537जानिले जानिले सत्त पहिचानि ले 9सन्त दरिया साहब (बिहारी) की वाणी
1541मन जब मगन भा मस्ताना। 10सन्त जगजीवन साहब की वाणी
1551गंगा पाछे को वही, मछरी चढ़ी पहाड़।।11सन्त पलटू साहब की वाणी
1562भजन आतुरी कीजिये और बात में देर।।11सन्त पलटू साहब की वाणी
1573उलटा कुआँ गगन में, तिसमें जरै चिराग।। 11सन्त पलटू साहब की वाणी
1584सुर नर मुनि जोगी यती सभै काल बसि होय।।11सन्त पलटू साहब की वाणी
1595हमने बातें तहकीक किया, सबमें साहब भरपूर है जी।।11सन्त पलटू साहब की वाणी
1606आठ पहर निरखत रहै जैसे चन्द चकोर।।11सन्त पलटू साहब की वाणी
1617हाथी घोड़ा खाक है, कहै सुनै सो खाक।। 11सन्त पलटू साहब की वाणी
1621तन खोजै तब पावै रे।12संत गरीब दासजी की वाणी
1631जागु जागु आतमा, पुरान दाग धोउ रे।13सन्त दूलन दासजी की वाणी 
1641ब्रह्म में जगत यह ऐसी विधि देषियत,14संत सुन्दरदासजी की वाणी
1652एक ब्रह्म मुख सूँ बनाय करि कहत हैं,14संत सुन्दरदासजी की वाणी
1663काक अरु रासभ, उलूक जब बोलत हैं, 14संत सुन्दरदासजी की वाणी
1671ऐसी आरती राम की करहि मन,15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
1682हिय निर्गुन नयनन्हि सगुन, रसना राम सुनाम ।15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
1693ज्ञान कहै अज्ञान बिनु, तम बिनु कहै प्रकास ।15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
1704पात पात कै सींचवो, बरी बरी के लोन ।15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
1715केशव कही न जाइ का कहिये ।15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
1726देहि सत्संग निज अंग श्रीरंग,15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
1737असुर सुर नाग नर जच्छ गन्धर्व खग,15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
1748वृत्र बलि प्रह्लाद मय व्याध गज,15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
1759सान्त निरपेच्छ निर्मम निरामय अगुन,15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
17610बिस्व उपकार हित व्यग्र चित सर्वदा,15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
17711वेद पय सिन्धु सुविचार मन्दर महा,15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
17812सोक सन्देह भय हर्ष तम तर्ष गन,15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
17913जत्र कुत्रपि मम जन्म निज कर्म बस,15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
18014प्रबल भव जनित त्रय व्याधि भैषज भक्ति,15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
18115जौं तेहि पन्थ चलइ मन लाई।15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
18216पावइ सदा सुख हरि कृपा, संसार आसा तजि रहै ।15गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
1831अपने जान मैं बहुत करी।16सन्त सूरदासजी की वाणी
1842ताते सेइये यदुराई ।16सन्त सूरदासजी की वाणी
1853जो मन कबहुँक हरि को जाँचै।16सन्त सूरदासजी की वाणी
1864जौं लौं सत्य स्वरूप न सूझत।  16सन्त सूरदासजी की वाणी
1871सुरति सिरोमनि घाट, गुमठ मठ मृदंग बजै रे ।।17सन्त तुलसी साहब की वाणी
1882अजब अनार दो बहिश्त के द्वार पै ।17सन्त तुलसी साहब की वाणी
1893आरति संग सतगुरु के कीजै।  17सन्त तुलसी साहब की वाणी
1904पैठ मन पैठ दरियाव दर आप में, 17सन्त तुलसी साहब की वाणी
1915स्त्रुति चढ़ि गई अकाश में, सोर भया ब्रह्मण्ड ।। 17सन्त तुलसी साहब की वाणी
1921राम मैं पूजा कहा चढ़ाऊँ? 18सन्तप्रवर रैदासजी की वाणी
1931भ्रमत फिरत बहु जनम बिलाने, 19सन्त धन्ना भगतजी की वाणी
1941तेरा मैं दीदार दीवाना।20सन्त मलूक दासजी की वाणी
1952अब मैं अनुभव पदहि समाना ।20सन्त मलूक दासजी की वाणी
1963रस रे निर्गुन राग से, गावै कोइ जाग्रत जोगी ।        20सन्त मलूक दासजी की वाणी
1971उठ्यो दिल अनुमान हरि ध्यान।।21सन्त भीखा साहब की वाणी
1982धुनि बाजत गगन महँ वीणा। जहाँ आपु रास रस भीना ।।21सन्त भीखा साहब की वाणी
1993करो विचार निर्धार अवराधिये, सहज समाधिऽ मन लाव भाई ।  21सन्त भीखा साहब की वाणी
2001मुरलिया बाज रही, कोई सुने सन्त धर ध्यान ।22सन्त राधास्वामी साहबजी की वाणी
2011निर्गुण ब्रह्म है न्यारा कोई, समझो समझन हारा ।।23जैन सन्त श्रीसिंगा साहब की वाणी
2021मदिया मैं पियबौं बनाइ, मैं कलवारिन होयबौं ।।1।।24बाबा कीनारामजी की वाणी
2031रे भाई! गैबी मरद सो न्यारे, वे ही अल्ला के प्यारे ।।25समर्थ स्वामी रामदासजी की वाणी
2041ध्यान लगावहु त्रिकुटी द्वार। गहि सुषमना बिहंगम सार ।।26सन्त शाह फकीरजी की वाणी
2051सब दानव देव पुनंग कहा, यह धर्म है चारूँ बरण का रे ।27सन्त सेवग दासजी की वाणी
2061गोला मारै ज्ञान का, सन्त सिपाही कोय ।28स्वामी निर्भयानंदजी की वाणी
2071अब मैं हरि बिन और न जाँचू, भजि भगवंत मगन ह्वै नाचूँ ।29सन्त स्वामी हरिदासजी (हरि पुरुषजी) की वाणी
2081जो नर दुःख में दुःख नहिं मानै।30गुरु तेगबहादुरजी की वाणी
2091सोई जागै रे सोई जागै रे। राम नाम ल्यो लागै रे ।।31संत बखनाजी की वाणी
2101लागी मोहि राम खुमारी हो।।32परम भक्तिन मीराबाई की वाणी
2112ऊँची अटरिया लाल किवड़िया, निरगुण सेज बिछी ।।32परम भक्तिन मीराबाई की वाणी
2123फागण के दिन चार, होरी खेल मना रे ।।32परम भक्तिन मीराबाई की वाणी
2134गली तो चारों बंद हुई, मैं हरि से मिलूँ कैसे जाय ।। 32परम भक्तिन मीराबाई की वाणी
2141सब क्षेत्र क्षर अपरा परा पर, 33महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज की वाणी 
2152अव्यक्त अनादि अनंत अजय, अज आदि मूल 33महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज की वाणी 
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